New guljar shayari गुलज़ार साहब की शायरी



०१
👉आदमी #बुलबुला है पानी का,
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है_डूबता भी है। फिर उभरता है_फिर से बहता है।।
न समंदर निगला सका इसको_न तवारीख़ तोड़ पाई है।
वक्त की #मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी                 का।।
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०२
👉 समेट लो इन "नाजुक" पलो को,
ना जाने ये लम्हे हो ना हो।
हो भी ये 'लम्हे क्या मालूम शामिल,
उन पलो में हम हो ना हो।।
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०३
👉टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ
में फिर से निखार जाना चाहता हूँ
मानता हूँ मुश्किल हैं…
लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ
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०४
👉उन्हें ये जिद थी कि हम बुलाये
हमें ये उम्मीद थी कि वो पुकारे
हैं नाम होंठो पे अब भी लेकिन
आवाज में पड़ गयी दरारे
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०५
👉हम तो समझे थे कि,
हम भूल गए हैं उनको।
क्या हुआ आज ये ,
किस बात पे रोना आया।।
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०६
👉मैंने मौत को देखा तो नहीं,
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
जीना ही छोड़ देता हैं।।
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०७
👉ना दूर रहने से रिश्ते टूट जाते हैं;
ना पास रहने से जुड़ जाते हैं!
यह तो एहसास के पक्के धागे हैं;
जो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं!!

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०८
👉ज्यादा कुछ........,
नहीं बदलता उम्र के साथ।
बस बचपन की जिद्द,
समझौतों में बदल जाती हैं।।
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०९
👉कुछ जख्मो......,
की उम्र नहीं होती हैं।
ताउम्र साथ चलते हैं ,
जिस्मो के ख़ाक होने तक।।
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१०
👉पलक से पानी गिरा है,
तो उसको गिरने दो|
कोई पुरानी तमन्ना,
पिंघल रही होगी||
और नया पुराने