हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो।
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो।।
न जाने कौन सी मज़बूरियों का क़ैदी हो।
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो।।
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे।
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो।।
ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर।
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो।।
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ।
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो।।
मैं वाक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल।
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो।।
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं "राहत"।
हर एक तराशे हुए बुत को देवता न कहो।।
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