किस्मत (झोंके का)
एक झोंका उठा सुबह सुबह
टुकड़ो में बंट के आगे बढ़ा
टुकड़ो में बंट के आगे बढ़ा
उतार चढ़ाव कालचक्र का हुआ
कोई आगे बढ़ा
कलियों के गुलो से महक उठा
कोई यादृच्छिक टहल रहा
एक मेरे पीछे चल पड़ा
साथ था, उत्सुक भी था
चल पड़ा मैं भी खेतों के तरफ
उनमे से एक पूरब में चला
पहुचा किसी भोजनालय के निकट
महक उठा दाल भजियो से
आगे बढ़ा किसी के मन को छला
एक उत्तर में गया
मन मे लिए सपने हज़ार
चाहता था सेज फूलो की
पर किस्मत ने उसे लताड़ा
गुजार दिया शहर के गंदे नाले से
दुर्गन्धित हो चढ़ा नाक पे किसी के
वो इठलाया अकिंचित मन में
हाथ हिला के भगाया
एक पश्चिम मे गया
पहुचा किसी बारात मे
आनंदित हुआ सब देख कर
सुरभित हुआ शहनाईयों की तान से
हिलते मचलते पहुँचा दूल्हन के पास में
अचानक कैद हुआ दूल्हा दुलहन के साथ मे
तपता रहा सारी रात यौवन की आग में
मैं भी चलता रहा उसके साथ मे
कच्ची पगडंडियों पर दक्षिण की राह में
गुजरा सरसो के खेतों के पास से
वो महक उठी मैं मंत्रमुग्ध हो उठा
मैं कुछ देखता रहा इधर उधर
शायद अपने लहलहाते फसलों को
कुछ इसी तरह हम घर आ गए
मैं चाहता था चुस्कियां अदरक के चाय की
चाय आयी वो महक उठी
मैं भी आनंदित हो गया महसूस कर उसे
वो फैल गयी महक बनकर सारे घर मे मेरे
समझ अब आ रहा है
एक रुत सदा नही होती
एक धुन सदा नही होती
घूमता रहता पहिया कालचक्र का
सबकी किस्मत एक सदा नही होती
🙏🙏धन्यवाद🙏🙏
✍️ Harish tiwari
📱7007987630
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