Munwwar Rana - gajal

                Munwwar Rana

भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती है


भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती है/
छतें महफ़ूज़ रहती हैं हवेली टूट जाती है//

मुहब्बत भी अजब शय है वो जब परदेस में रोये/
तो फ़ौरन हाथ की एक-आध चूड़ी टूट जाती है//

कहीं कोई कलाई एक चूड़ी को तरसती है/
कहीं कंगन के झटके से कलाई टूट जाती है//
लड़कपन में किये वादे की क़ीमत कुछ नहीं होती/
अँगूठी हाथ में रहती है मँगनी टूट जाती है//

किसी दिन प्यास के बारे में उससे पूछिये जिसकी/
कुएँ में बाल्टी रहती है रस्सी टूट जाती है//

कभी एक गर्म आँसू काट देता है चटानों को/
कभी एक मोम के टुकड़े से छैनी टूट जाती है.//
❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌

ज़िन्दगी से हर ख़ुशी अब ग़ैर-हाज़िर हो गई


ज़िन्दगी से हर ख़ुशी अब ग़ैर हाज़िर हो गई।।।
इक शकर होना थी बाक़ी वो भी आख़िर हो गई।।।

दुश्मनी ने काट दी सरहद पे आख़िर ज़िन्दगी।।।
दोस्ती गुजरात में रह कर मुहाजिर हो गई।।।
❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌

मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती


मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती!!
यह कालिख उम्र भर रहती है साबुन से नहीं जाती!

शकर फ़िरकापरस्ती की तरह रहती है नस्लों तक!
ये बीमारी करेले और जामुन से नहीं जाती!!

वो सन्दल के बने कमरे में भी रहने लगा लेकिन!!
महक मेरे लहू की उसके नाख़ुन से नहीं जाती!!

इधर भी सारे अपने हैं उधर भी सारे अपने थे!!
ख़बर भी जीत की भिजवाई अर्जुन से नहीं जाती!

मुहब्बत की कहानी मुख़्तसर होती तो है लेकिन!!
कही मुझसे नहीं जाती सुनी उनसे नहीं जाती!!
❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌

चिराग़े-ए-दिल बुझाना चाहता था


चिराग़-ए-दिल बुझाना चाहता था;
वो मुझको भूल जाना चाहता था//

मुझे वो छोड़ जाना चाहता था;
मगर कोई बहाना चाहता था//
सफ़ेदी आ गई बालों पे उसके;
वो बाइज़्ज़त घराना चाहता था//
उसे नफ़रत थी अपने आपसे भी;
मगर उसको ज़माना चाहता था//
तमन्ना दिल की जानिब बढ़ रही थी;
परिन्दा आशियाना चाहता था//
बहुत ज़ख्मी थे उसके होंठ लेकिन;
वो बच्चा मुस्कुराना चाहता था//
ज़बाँ ख़ामोश थी उसकी मगर वो;
मुझे वापस बुलाना चाहता था//

जहाँ पर कारख़ाने लग गए हैं;
मैं एक बस्ती बसाना चाहता था//

उधर क़िस्मत में वीरानी लिखी थी;
इधर मैं घर बसाना चाहता था//

वो सब कुछ याद रखना चाहता था;
मैं सब कुछ भूल जाना चाहता था//
❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌❌

तितली ने गुल को चूम के दुल्हन बना दिया


तितली ने गुल को चूम के बना दिया।
ऐ इश्क़ तूने सोने को कुन्दन बना दिया।।

तेरे ही अक्स को तेरा दुश्मन बना दिया।
आईने ने मज़ाक़ में सौतन बना दिया।।

मैने तो सिर्फ़ आपको चाहा है उम्र भर।
यह किसने आपको मेरा दुश्मन बना दिया।।

जितना हँसा था उससे ज़्यादा उदास हूँ।
आँखों को इन्तज़ार ने सावन बना दिया।।

ज़हमत न हो ग़मों को पहुँचते हैं इसलिए।
ज़ख़्मों ने दिल में छोटा-सा रौज़न बना दिया।।

जी भर के तुम को देखने वाला था मैं मगर।
बाद-ए-सबा ने ज़ुल्फ़ों को चिलमन बना दिया।।

नफ़रत न ख़त्म कर सकी सोने का एक महल।
चाहत ने एक चूड़ी को कंगन बना दिया।।


भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती है


भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती है/
छतें महफ़ूज़ रहती हैं हवेली टूट जाती है//

मुहब्बत भी अजब शय है वो जब परदेस में रोये/
तो फ़ौरन हाथ की एक-आध चूड़ी टूट जाती है//

कहीं कोई कलाई एक चूड़ी को तरसती है/
कहीं कंगन के झटके से कलाई टूट जाती है//
लड़कपन में किये वादे की क़ीमत कुछ नहीं होती/
अँगूठी हाथ में रहती है मँगनी टूट जाती है//

किसी दिन प्यास के बारे में उससे पूछिये जिसकी/
कुएँ में बाल्टी रहती है रस्सी टूट जाती है//

कभी एक गर्म आँसू काट देता है चटानों को/
कभी एक मोम के टुकड़े से छैनी टूट जाती है.//
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ज़िन्दगी से हर ख़ुशी अब ग़ैर-हाज़िर हो गई


ज़िन्दगी से हर ख़ुशी अब ग़ैर हाज़िर हो गई।।।
इक शकर होना थी बाक़ी वो भी आख़िर हो गई।।।

दुश्मनी ने काट दी सरहद पे आख़िर ज़िन्दगी।।।
दोस्ती गुजरात में रह कर मुहाजिर हो गई।।।
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मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती


मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती!!
यह कालिख उम्र भर रहती है साबुन से नहीं जाती!

शकर फ़िरकापरस्ती की तरह रहती है नस्लों तक!
ये बीमारी करेले और जामुन से नहीं जाती!!

वो सन्दल के बने कमरे में भी रहने लगा लेकिन!!
महक मेरे लहू की उसके नाख़ुन से नहीं जाती!!

इधर भी सारे अपने हैं उधर भी सारे अपने थे!!
ख़बर भी जीत की भिजवाई अर्जुन से नहीं जाती!

मुहब्बत की कहानी मुख़्तसर होती तो है लेकिन!!
कही मुझसे नहीं जाती सुनी उनसे नहीं जाती!!
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चिराग़े-ए-दिल बुझाना चाहता था


चिराग़-ए-दिल बुझाना चाहता था;
वो मुझको भूल जाना चाहता था//

मुझे वो छोड़ जाना चाहता था;
मगर कोई बहाना चाहता था//
सफ़ेदी आ गई बालों पे उसके;
वो बाइज़्ज़त घराना चाहता था//
उसे नफ़रत थी अपने आपसे भी;
मगर उसको ज़माना चाहता था//
तमन्ना दिल की जानिब बढ़ रही थी;
परिन्दा आशियाना चाहता था//
बहुत ज़ख्मी थे उसके होंठ लेकिन;
वो बच्चा मुस्कुराना चाहता था//
ज़बाँ ख़ामोश थी उसकी मगर वो;
मुझे वापस बुलाना चाहता था//

जहाँ पर कारख़ाने लग गए हैं;
मैं एक बस्ती बसाना चाहता था//

उधर क़िस्मत में वीरानी लिखी थी;
इधर मैं घर बसाना चाहता था//

वो सब कुछ याद रखना चाहता था;
मैं सब कुछ भूल जाना चाहता था//
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तितली ने गुल को चूम के दुल्हन बना दिया


तितली ने गुल को चूम के बना दिया।
ऐ इश्क़ तूने सोने को कुन्दन बना दिया।।

तेरे ही अक्स को तेरा दुश्मन बना दिया।
आईने ने मज़ाक़ में सौतन बना दिया।।

मैने तो सिर्फ़ आपको चाहा है उम्र भर।
यह किसने आपको मेरा दुश्मन बना दिया।।

जितना हँसा था उससे ज़्यादा उदास हूँ।
आँखों को इन्तज़ार ने सावन बना दिया।।

ज़हमत न हो ग़मों को पहुँचते हैं इसलिए।
ज़ख़्मों ने दिल में छोटा-सा रौज़न बना दिया।।

जी भर के तुम को देखने वाला था मैं मगर।
बाद-ए-सबा ने ज़ुल्फ़ों को चिलमन बना दिया।।

नफ़रत न ख़त्म कर सकी सोने का एक महल।
चाहत ने एक चूड़ी को कंगन बना दिया।।

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