जिसे दुश्मन #समझता हूँ वही अपना निकलता है। - Munwwar Rana

जिसे दुश्मन #समझता हूँ वही अपना निकलता है/
हर एक पत्थर से मेरे सर का कुछ #रिश्ता निकलता है//
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डरा  धमका के तुम हमसे #वफ़ा करने को कहते हो!
कहीं तलवार से भी #पाँव का काँटा निकलता है!!
ज़रा-सा झुटपुटा होते ही छुप जाता है #सूरज भी!
मगर इक चाँद है जो शब में भी #तन्हा निकलता है!!
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किसी के •पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं|
किसी की एड़ियों से रेत में •चश्मा निकलता है||
फ़ज़ा में घोल दीं हैं •नफ़रतें अहल ए सियासत ने|
मगर पानी •कुएँ से आज तक मीठा निकलता है||
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जिसे भी जुर्म ए ग़द्दारी में तुम सब कत्ल करते हो\
उसी की जेब से क्यों` मुल्क का झंडा निकलता है\\
दुआएँ माँ की पहुँचाने° को मीलों-मील आती हैं\
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा° निकलता है\\


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