तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा / कुमार विश्वास
ओ "कलपवृक्ष" की सोनजुही /
ओ अमलताश की अमलकली //
धरती के आतप से जलते...;
मन पर छाई निर्मल बदली...;
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त #संसार नहीं दे पाऊँगा /
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं #प्यार नहीं दे पाऊँगा //
तुम कल्पव्रक्ष का #फूल और ।
मैं #धरती का अदना गायक ।।
तुम जीवन के उपभोग #योग्य ।
मैं नहीं #स्वयं अपने लायक ।।
तुम नहीं अधूरी #गजल शुभे ।
तुम #शाम गान सी पावन हो ।।
हिम शिखरों पर #सहसा कौंधी ।
बिजुरी सी #तुम मनभावन हो. ।।
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा /
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा //
तुम जिस शय्या पर #शयन करो ।
वह क्षीर #सिन्धु सी पावन हो ।।
जिस आँगन की हो #मौलश्री ।
वह #आँगन क्या वृन्दावन हो ।।
जिन अधरों का #चुम्बन पाओ ।
वे अधर नहीं गंगातट हों ।।
जिसकी छाया बन साथ रहो ।
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो ।।
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा /
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा //
मै तुमको चाँद सितारों का ।
सौंपू उपहार भला कैसे ।।
मैं यायावर बंजारा साधू ।
सुर श्रृंगार भला कैसे ।।
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे ।
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ,दो पल प्यार भला कैसे ।।
इसलिये विवश हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा /
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा //
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