नमस्कार दोस्तो, आज हम आपके लिए लेकर आए है कुमार विश्वास की की एक और शानदार रचना - फ़ोन आया है
अजब सी ऊब शामिल हो गयी है रोज़ जीने में !
पलों को दिन में_दिन को काट कर #जीना महीने में !!
महज मायूसियाँ जगती हैं अब कैसी भी आहट पर !
हज़ारों उलझनों के #घोंसले लटके हैं चैखट पर !!
अचानक सब की सब ये #चुप्पियाँ इक साथ पिघली हैं !
उम्मीदें सब सिमट कर हाथ बन जाने को #मचली हैं !!
मेरे कमरे के #सन्नाटे ने अंगड़ाई सी तोड़ी है !
मेरी ख़ामोशियों ने एक नग़मा #गुनगुनाया है !!
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है।।
सती का #चैतरा दिख जाए जैसे रूप बाड़ी में !
कि जैसे छठ के मौके पर जगह मिल जाए #गाड़ी में !!
मेरी आवाज़ से जागे तुम्हारे बाम ओ दर जैसे !
ये #नामुमकिन सी हसरत है , ख़्याली है मगर जैसे !!
बड़ी नाकामियों के बाद हिम्मत की लहर जैसे !
बड़ी बेचैनियों के बाद #राहत का पहर जैसे !!
बड़ी ग़ुमनामियों के बाद #शोहरत की मेहर जैसे !
सुबह और शाम को साधे हुए इक #दोपहर जैसे !!
बड़े उन्वान को बाँधे हुए छोटी #बहर जैसे !
नई दुल्हन के #शरमाते हुए शाम-ओ-सहर जैसे !!
हथेली पर रची मेहँदी अचानक मुस्कुराई है !
मेरी आँखों में आँसू का #सितारा जगमगाया है !!
तुम्हारा फ़ोन आया है ,तुम्हारा फ़ोन आया है ।।
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