Kumar vishwas new poetry, , चाँद ने कहा है, एक बार फिर चकोर से, मांग की सिंदूर रेखा, with lyrics badnamlekhni

नमस्कार दोस्तों,
आज इस पोस्ट में मै आपके लिए लेकर आया हूं, DR. Kumar Vishwas Ji की एक बहुत ही सुंदर रचना जिसका शीर्षक है,

||मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल ||

मांग  की  सिंदूर  रेखा,  तुमसे  ये  पूछेगी  कल!! 
"यूँ  मुझे  सर  पर  सजाने  का  तुम्हें  अधिकार  क्या  है!! 

तुम  कहोगी  "वो  समर्पण,  बचपना  था"  तो  कहेगी!! 
गर  वो  सब कुछ  बचपना था तो  कहो  फिर  प्यार क्या है!! 

कल  कोई  अल्हड  अयाना,  बावरा  झोंका  पवन  का!! 
जब  तुम्हारे  इंगितो  पर,  गंध  भर  देगा  चमन  में!! 

या  कोई  चंदा  धरा  का,  रूप  का  मारा  बेचारा!! 
कल्पना  के  तार  से  नक्षत्र  जड़  देगा  गगन  पर!! 

तब  किसी  आशीष  का  आँचल  मचल  कर  पूछ  लेगा!! 
"यह  नयन-विनिमय  अगर  है प्यार  तो  व्यापार  क्या है!! 

कल  तुम्हरे  गंधवाही-केश,  जब  उड़  कर  किसी  की!! 
आखँ  को  उल्लास  का  आकाश  कर  देंगे  कहीं  पर!! 

और  सांसों  के  मलयवाही-झकोरे  मुझ  सरीखे!! 
नव-तरू  को  सावनी-वातास  कर  देगे  वहीँ  पर!! 

तब  यही  बिछुए,  महावर,  चूड़ियाँ,  गजरे  कहेंगे!! 
"इस  अमर-सौभाग्य  के  श्रृंगार  का  आधार  क्या  है!! 

कल  कोई  दिनकर  विजय  का,  सेहरा  सर  पर  सजाये!! 
जब  तुम्हारी  सप्तवर्णी  छाँह  में  सोने  चलेगा!! 

या  कोई  हारा-थका  व्याकुल  सिपाही  जब  तुम्हारे!! 
वक्ष  पर  धर  शीश  लेकर  हिचकियाँ  रोने  चलेगा!! 

तब  किसी  तन  पर  कसी  दो  बांह  जुड़  कर  पूछ  लेगी!! 
"इस  प्रणय  जीवन  समर  में  जीत  क्या  है  हार  क्या है !! 

मांग  की  सिंदूर  रेखा,  तुमसे  ये  पूछेगी  कल!! 
"यूँ  मुझे  सर  पर  सजाने  का  तुम्हें  अधिकार  क्या  है!! 
✍🏿kumar vishwas

Best hindi kavita


|| चाँद ने कहा है, एक बार फिर चकोर से ||

चाँद  ने  कहा  है,  एक  बार  फिर  चकोर  से!! 
'इस  जनम  में  भी  जलोगे  तुम  ही  मेरी  ओर  से!! 

हर  जनम  का  अपना  चाँद  है,  चकोर  है  अलग!! 
यूँ  जनम-जनम  का  एक  ही  मछेरा  है  मगर!! 

हर  जनम  की  मछलियाँ  अलग  हैं  डोर  है  अलग!! 
डोर  ने  कहा  है  मछलियों  की  पोर-पोर  से!! 

'इस  जनम  में  भी  बिंधोगी  तुम  ही  मेरी  ओर  से,!! 
चाँद  ने  कहा  है,  एक  बार  फिर  चकोर  से!! 

'इस  जनम  में  भी  जलोगे  तुम  ही  मेरी  ओर  से!! 

है  अनंत  सर्ग  यूँ  और  कथा  ये  विचित्र  है!! 
पंक  से  जनम  लिया  पर  कमल  पवित्र  है!! 

यूँ  जनम-जनम  का  एक  ही  वो  चित्रकार  है!! 
हर  जनम  की  तूलिका  अलग,  अलग  ही  चित्र  है!! 

ये  कहा  है  तूलिका  ने,  चित्र  के  चरित्र  से!! 
'इस  जनम  में  भी  सजोगे  तुम  ही  मेरी  कोर  से!! 

चाँद  ने  कहा  है,  एक  बार  फिर  चकोर  से!! 
'इस  जनम  में  भी  जलोगे  तुम  ही  मेरी  ओर  से!! 

हर  जनम  के  फूल  हैं  अलग,  हैं  तितलियाँ  अलग!! 
हर  जनम  की  शोखियाँ  अलग,  हैं  सुर्खियाँ  अलग!! 

ध्वँस  और  सृजन  का  एक  राग  है  अमर,  मगर!! 
हर  जनम  का  आशियाँ  अलग,  है  बिजलियाँ  अलग!! 
नीड़  से  कहा  है  बिजलियों  ने  जोर-शोर  से!! 

'इस  जनम  में  भी  मिटोगे  तुम  ही  मेरी  ओर  से!! 
चाँद  ने  कहा  है,  एक  बार  फिर  चकोर  से!! 

'इस  जनम  में  भी  जलोगे  तुम  ही  मेरी  ओर  से!! 
✍🏿kumar vishwas 
Kumar Vishwas full kavita


न गालिब हूं, न गुलज़ार प्रिए - 


Harish Tiwari

न गालिब हूं, न गुलज़ार प्रिए ,
न प्रेम की कोई किताब प्रिए।

न मीरा के गीतों की तान प्रिए, 
न श्याम के नैनो की बान प्रिए।।

हूं तेरी यादों में खोया हुआ,
तेरे सपनों के संग सोया हुआ।

हूं तुझको चाहने वाला प्रिए, 
तेरे लिए सबकुछ करने वाला प्रिए।।
✍🏿 Harish Tiwari
Kumar Vishwas new poetry 2020
Kumar Vishwas stage show 2020

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तो दोस्तो आपको ये कुमार विश्वास जी की रचना कैसी लगी मुझे कॉमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।
बदनाम लेखनी के इस पेज लिए पधारने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏
कुमार विश्वास जी की अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए उपर सर्च बॉक्स में कुमार विश्वास लिखकर सर्च कराए 🖕🖕🖕


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