Mai tumhe dhudhne swarg ke dwar tak - Dr. kumar_Vishwas

मै तुम्हे ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक।
रोज आता रहा, रोज जाता था।।
तुम गजल बन गई, गीत में ढाल गई।
मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा।।

जिंदगी के सभी रास्ते एक थे।
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक रही।।
आप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद ।
मन की गोप कथाएं नयन तक रही ।।
प्राण के पृष्ठ पर प्रीत की अल्पना।
तुम मिटाती थी, मै बनाता रहा।।

तुम गजल बन गई, गीत में ढल गई।
मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा।।

एक खामोश हलचल बनी जिंदगी ।
गहरा ठहरा हुआ जल बनी जिंदगी ।।
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ ।
उर्मिला का की पल बनी जिंदगी ।।
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया ।
तुम बुझाती रही, मै जलाता रहा ।।

तुम गजल बना गई, गीत में ढल गई ।
मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा ।।

तुम चली तो है मन अकेला हुआ ।
सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ ।।
जब भी लौटी नई खुशबूओं में सजी ।
तन भी बेला हुआ, मन भी बेला हुआ ।।
खुद के आघात पर, व्यर्थ की बात पर ।
रूठती तुम रही मै मनाता रहा ।।

तुम गजल बन गई गीत में ढल गई ।
मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा ।।
मै तुम्हे ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक ।
रोज जाता रहा, रोज आता रहा ।।

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