muktak - kumar vishwas/ मुक्तक - कुमार विश्वास

किसी पत्थर में मूरत है, कोई पत्थर की मूरत है ।
लो हमने देख ली दुनिया, जो इतनी खूबसूरत है ।।
जमाना अपनी समझे, पर मुझे अपनी खबर ये है ।
तुम्हे मेरी जरूरत है, मुझे तेरी जरूरत है ।।

बस्ती बस्ती घोर उदासी, पर्वत पर्वत खालीपन ।
मन हीरा बेमोल बिक गया, घिस घिस रीता तन चंदन ।।
इस धरती से उस अम्बर तक, दो ही चीज गजब की है ।
एक तो तेरा भोलापन, एक मेरा दीवानापन ।।

मेरा अपना तजुरबा है, तुम्हे बतला रहा हूं मै ।
कोई लब छू गया था तब, अभी तक गा रहा हूं मै ।।
फिराके यार में कैसे जिया जाए, बिना तड़पे ।
जो में खुद ही नहीं समझा, वही समझा रहा हूं मै ।।

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा एकतारा है ।
जो हमको भी प्यारा है, तुमको भी प्यारा है ।।
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर ।
तब कहती हो प्या हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है ।।

गीरेबा चाक करना क्या है, सीना और भी मुश्किल है ।
हर एक पल मुस्कुराकर अश्क और भी मुश्किल है ।।
हमारी बदनसीबी ने हमें इतना सिखाया है ।
किसी के इश्क़ में मरने से जीना और भी मुश्किल है ।।

जो धरती से अम्बर जोड़े उसका नाम मोहबब्त है ।
को शीशे से पत्थर तोड़े उसका नाम मोहब्बत है ।।
कतरा कतरा सागर तक जाती हर उम्र मगर ।
जो बहता दरिया वापस मोड़े उसका नाम मोहब्बत है ।।

पुकारे आंख में चढ़कर तो खुं को खूं  समझता है ।
अंधेरा किसको कहते है ये बस जुगनू समझता है ।।
हमे तो चांद तारो में भी तेरा रूप दिखता है ।
मोहब्बत में नुमाइश को आदये तू समझता है ।।

बहुत टूटा बहुत बिखरा, थपेड़े सह नहीं पाया ।
हवाओं के इशारे पर मगर मै बह नहीं पाया ।।
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा ।
कभी तुम सुन नहीं पाई, कभी मै कह नहीं पाया ।।

समन्दर पीर का मंज़र है लेकिन रो नही सकता ।
ये आंसू प्यार के मोती है इनको खो नही सकता ।।
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले ।
जो मेरा हो नही सकता, वो तेरा हो नहीं सकता ।।

तुम्हारे पास हूं लेकिन जो दूरी है समझता हूं ।
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूं ।।
तुम्हे मै भूल जाऊंगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन ।
तुम्ही को भूलना सबसे जरूरी है समझता हूं ।।

पनाहो में जो आया हो तो उस पर वार क्या करना ।
जो दिल हारा हुआ हो तो उस फिर अधिकार क्या करना ।।
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने को कशमकश में है ।
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना ।।

मोहब्बत एक अहसासो की पावन सी कहानी है ।
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी थी ।।
यहां सब लोग कहते है मेरी आंखो में पानी है ।
जो तो समझे तो मोती है, जो न समझे तो पानी है ।।

बात करनी है, बात कौन करे ?
दर्द से दो-दो हाथ कौन करे ?
हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं ?
चाँद ना हो तो रात कौन करे ?
हम तुझे रब कहें या बुत समझें ?
इश्क में जात-पात कौन करे ?
जिंदगी भर कि कमाई तुम थे ?
इस से ज्यादा ज़कात कौन करे ?


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