mere man ke gaon me - Dr. kumar_vishwas/ मेरे मन के गांव में - डा. कुमार_विश्वास


जब भी मुंह ढक लेता हूं,
तेरी जुल्फों की छाव में ।
कितने गीत उतर आए है,
मेरे मन के गांव में ।।

एक गीत पलको पर लिखना ,
एक गीत होंठो पर लिखना ।
यानी सारे गीत हृदय की ,
मीठी सी चोटो पर लिखना ।।

जैसे चुभ जाता है ,
कोई कांटा नंगे पांव में ।
ऐसे गीत उतर आते है ,
 मेरे मन के गांव में ।।

पलके बन्द हुई तो जैसे,
धरती के उन्माद सो गए ।
पलके अगर उठी तो जैसे,
बिन बोले संवाद हो गए ।।

जैसे धूप चुनरिया ओढ़े, 
आ बैठी हो छाव में ।
ऐसे गीत उतर आते हैं,
 मेरे मन के गांव में ।।



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